इस तस्वीर को ज़रा ग़ौर से देखें तो हमें ज्ञात होगा कि हाथ में मात्र बॉक्स का बाहरी आवरण है..भीतरी नहीं...!!

भीतरी आवरण से तितली स्वरूप अंतर्मन स्वतंत्र है और खुले आसमाँ में विचरण करने को तैयार है..

इसी प्रकार हमारी देह ये बॉक्स है जिसे सब पकड़कर बैठे हैं...दुनिया सोचती है हमें जैसे चाहे चला सकती है....पर बस हमारी गलती ये है कि हम इस बॉक्स का ढक्कन भी बंद कर देते हैं और खुद को दुनिया के नज़रिए में ही हमेशा के लिए क़ैद करके रखते हैं..!! और सत्य से अनभिज्ञ रहते हैं कि ये ढक्कन खोलने कोई और नहीं आएगा बल्कि आपके अंतर्मन से उत्प्रेरित ज्ञान ही आपको इस ढक्कन को खोलने में सहायता करेगा..!!

पर हम इस ढक्कन की वजह से ही हमेशा ही खुद को अपने मन का ही ग़ुलाम बना लेते हैं और बस विचारों में उलझे रहते हैं...इस ढक्कन को खोलिए और अंतर्मन को आज़ाद कीजिए बाक़ी दुनिया को भ्रमित रहने दीजिए कि आप उनके हैं...!! और आप तो स्वतंत्र ही हैं बस प्रयास करने भर की देर है...!!

आज़ाद है पंछी की तरह
पर उसकी नीड़ से बंधा है,
आज़ाद है पतंग की तरह
पर उसकी डोर से बंधा है,
आज़ाद है क़लम की तरह
पर उसकी स्याही से बंधा है,
आज़ाद है विचारों की तरह
पर उसकी ग़ुलामी से बंधा है,
आज़ाद है आसमाँ की तरह
पर उसकी ऊँचाई से बंधा है,
आज़ाद है मन की तरह
पर उसकी वृत्तियों से बंधा है,
आज़ाद है कर्म की तरह
पर उसकी नियति से बंधा है,
हो जाना चाहता है खुला आसमाँ
जिसमें उसकी दिशायें नहीं
हो जाना चाहता है अथाह प्रकृति
जिसमें उसकी परिधि नहीं
खो जाना चाहता है अंतरात्मा में कहीं
जिसमें उसकी इच्छायें नहीं
दुनिया के हाथों में किसी की बागडोर नहीं
जो भीतर से पहले ही उड़ चुका हो
उसकी डोर किसी के हाथ में नहीं..!!!

.........डॉ. ऋचा ‘स्पष्ट’